↔😐गांधीजी की असलियत। .... क्या आप जानते हो ?↔😞
आज हे २ अक्टूबर २०१८ , गांधीजी का १५०तः जन्मदिन का दिवस। इस दिवस में में आपको गांधीजी के स्वार्थ ब्यवहार और उन्हीं की वजय से आज कैसे भारत को अनेक बुरी परिस्तितियों का सामना करना पड रहा हे।
चलिए सुरु हें आज की लम्बी विषय।
जब भारत स्वाधीन नहीं हुआ था तब ब्रिटिश सरकार हमारे ऊपर बहुत जुल्म किया था। तब लोगों के मन में भरी उठी थी अंग्रेज़ों के खिलाफ एकत्रित होकर आंदोलन करना का भाव। इनमेसे कुछ लोग ऐसे थे जो की भारत को ही अपना जीवन मान लिया था। इनमे से थे मेरे प्रिय भगत सिंह और महात्मा गांधीजी। में भगत सिंहजी को ही अपना भाई मंटा आ रहा हूँ. क्योंकि उनके मुताबिक जिस चीज़ की जरुरत नहीं हे उसे अवश्य नहीं रखना चाहिए। उसे निकालो और फेक दो। मेरे लिए कुछ ऐसे ही हैं गाँधीजी की यादें। मैं बश उनको पुस्तक में ही पढता हूँ और एग्जाम में लिख देता हूँ।
गांधीजी जब अफ्रीका में थे तब वे काले लोगों के लिए लिए लड़ते थे। बे अपने देश को छोड़
के अफ्रीका में वकील बन उनकी सेवा करते थे। ये तो ठीक हे , लेकिन वहां उन्होंने कोई दाल गठन नहीं किया था। वे अकेले ही सबकी सेवा कर रहे थे और तब वे कोई भी नेता बनने के चक्कर में नहीं थे। वे जानते थे की भारत एक कमजोर देश हे जिसमे जनता के पास कोई बल नहीं हे। हर कोई भारतीय तब सिर्फ अंग्रेजों के इशारों में चलता था। उनके पास भारत के सबसे बड़े नेता बनने का बहुत बड़ा मौका था। वे जानते थे की अगर वह भारत में आकर अंग्रेजों को भारत से जाने से मजबूर करेंगे तो वे देश को शासन कर पाएंगे और अपने हिसाब से देश को चलाएंगे। तभी उनको इक बड़ा विस्वशी दोस्त मिला। जिनका नाम था जवाहरलाल नेहरू। नेहरू जी के साथ मिलकर उन्होंने कांग्रेस दल का गठन किया था। उससे पहले गांधीजी को कोई दल की सहायता नहीं पड़ी. लेकिन वे जब भारत आए तब क्यों पड़ी ? मेरे मुताबिक तो वे सिर्फ भारत के ऊपर शासन करना चाहते थे।
मेरे मुताबिक असली महापुरुष तो भगत सिंह और मंगल पांडेय जैसा होने चाहिए।
भगत और सुखदेव ने लाहौर में 'नौजवान भारत सभा' की स्थापना की, जिसका आदर्श 'सेवा के माध्यम से पीड़ित और बलिदान' था। उनके सह-यात्रियों के लिए उनका संदेश बलिदान और सेवा तक ही सीमित नहीं था। वह लिखते हैं: "हम मानवता के लिए अपने प्यार में किसी के भी नहीं हैं। किसी भी व्यक्ति के खिलाफ किसी भी दुर्भाग्य से दूर, हम मानव जीवन को शब्दों से परे पवित्र मानते हैं।" वह बताता है कि उसका अर्थ क्या है 'क्रांति': "यह बम और पिस्तौल की पंथ नहीं है। 'क्रांति' से हमारा मतलब है कि चीजों का वर्तमान क्रम, जो प्रकट अन्याय पर आधारित है, को बदलना चाहिए।" वह हमेशा हमारे दिल में जिंदा रहेगा। "इंकलाब जिंदाबाद" भगत देशभक्त को दोस्ती में वर्णित किया जा सकता है जो उनका पसंदीदा था: "दिल से निकलेगी ना मार के भी वतन की उल्फत, मेरी मिट्टी से भी खुश्बू-ए-वतन आयेगी (मेरी मृत्यु के बाद भी मेरी मातृभूमि के लिए मेरा प्यार कम नहीं होगा मेरे दिल से। यहां तक कि मेरी राख भी आपकी महानता और प्यार की गंध करेगा)। "
आज हे २ अक्टूबर २०१८ , गांधीजी का १५०तः जन्मदिन का दिवस। इस दिवस में में आपको गांधीजी के स्वार्थ ब्यवहार और उन्हीं की वजय से आज कैसे भारत को अनेक बुरी परिस्तितियों का सामना करना पड रहा हे।
चलिए सुरु हें आज की लम्बी विषय।
जब भारत स्वाधीन नहीं हुआ था तब ब्रिटिश सरकार हमारे ऊपर बहुत जुल्म किया था। तब लोगों के मन में भरी उठी थी अंग्रेज़ों के खिलाफ एकत्रित होकर आंदोलन करना का भाव। इनमेसे कुछ लोग ऐसे थे जो की भारत को ही अपना जीवन मान लिया था। इनमे से थे मेरे प्रिय भगत सिंह और महात्मा गांधीजी। में भगत सिंहजी को ही अपना भाई मंटा आ रहा हूँ. क्योंकि उनके मुताबिक जिस चीज़ की जरुरत नहीं हे उसे अवश्य नहीं रखना चाहिए। उसे निकालो और फेक दो। मेरे लिए कुछ ऐसे ही हैं गाँधीजी की यादें। मैं बश उनको पुस्तक में ही पढता हूँ और एग्जाम में लिख देता हूँ।
गांधीजी जब अफ्रीका में थे तब वे काले लोगों के लिए लिए लड़ते थे। बे अपने देश को छोड़
के अफ्रीका में वकील बन उनकी सेवा करते थे। ये तो ठीक हे , लेकिन वहां उन्होंने कोई दाल गठन नहीं किया था। वे अकेले ही सबकी सेवा कर रहे थे और तब वे कोई भी नेता बनने के चक्कर में नहीं थे। वे जानते थे की भारत एक कमजोर देश हे जिसमे जनता के पास कोई बल नहीं हे। हर कोई भारतीय तब सिर्फ अंग्रेजों के इशारों में चलता था। उनके पास भारत के सबसे बड़े नेता बनने का बहुत बड़ा मौका था। वे जानते थे की अगर वह भारत में आकर अंग्रेजों को भारत से जाने से मजबूर करेंगे तो वे देश को शासन कर पाएंगे और अपने हिसाब से देश को चलाएंगे। तभी उनको इक बड़ा विस्वशी दोस्त मिला। जिनका नाम था जवाहरलाल नेहरू। नेहरू जी के साथ मिलकर उन्होंने कांग्रेस दल का गठन किया था। उससे पहले गांधीजी को कोई दल की सहायता नहीं पड़ी. लेकिन वे जब भारत आए तब क्यों पड़ी ? मेरे मुताबिक तो वे सिर्फ भारत के ऊपर शासन करना चाहते थे।
मेरे मुताबिक असली महापुरुष तो भगत सिंह और मंगल पांडेय जैसा होने चाहिए।
भगत और सुखदेव ने लाहौर में 'नौजवान भारत सभा' की स्थापना की, जिसका आदर्श 'सेवा के माध्यम से पीड़ित और बलिदान' था। उनके सह-यात्रियों के लिए उनका संदेश बलिदान और सेवा तक ही सीमित नहीं था। वह लिखते हैं: "हम मानवता के लिए अपने प्यार में किसी के भी नहीं हैं। किसी भी व्यक्ति के खिलाफ किसी भी दुर्भाग्य से दूर, हम मानव जीवन को शब्दों से परे पवित्र मानते हैं।" वह बताता है कि उसका अर्थ क्या है 'क्रांति': "यह बम और पिस्तौल की पंथ नहीं है। 'क्रांति' से हमारा मतलब है कि चीजों का वर्तमान क्रम, जो प्रकट अन्याय पर आधारित है, को बदलना चाहिए।" वह हमेशा हमारे दिल में जिंदा रहेगा। "इंकलाब जिंदाबाद" भगत देशभक्त को दोस्ती में वर्णित किया जा सकता है जो उनका पसंदीदा था: "दिल से निकलेगी ना मार के भी वतन की उल्फत, मेरी मिट्टी से भी खुश्बू-ए-वतन आयेगी (मेरी मृत्यु के बाद भी मेरी मातृभूमि के लिए मेरा प्यार कम नहीं होगा मेरे दिल से। यहां तक कि मेरी राख भी आपकी महानता और प्यार की गंध करेगा)। "
गांधीजी को अंग्रेज़ों ने भगत सिंह के बारे में निर्णय लेने के लिए बुलाया था। लम्बी बातचीत के बाद अंत में भगत सिंह को पांसि दिया गया। भगत सिंह को बचने के जगह उनकी फांसी ओर कम कर दी गयी। अगर भगत सिंह जिन्दा होते तो आज भारत को युद्ध का सामना नहीं करना पड़ता। सब हमारे देशभक्ति को देखकर ही भाग जाते। अगर भगत सिंह के राह में हम चलते शायद अंग्रेज़ हमें पहले से ही भागकर जा चुके होते। लेकिन गांधीजी नाकामी बर्दाश नहीं सकते थे। इस लिए वे हमारे वतन तीन बरपुत्रों को फांसी देने के लिए राज़ी हो गए।
गाँधीजी की वजह से ही भारत और पाकिस्तान अलग हुए थे। गांधीजी अपने ही दल को जितना चाहते थे। क्या उस समय अहिंसा भाव नहीं था???? क्या उस समय लोगों के बिच में मतदान नहीं हो सकता था। अगर उस समय मतदान होता तो शायद आज हमारे मुस्लमान भाई हमारे साथ होते। लेकिन यही था गांधीजी का स्वार्थ।
गाँधीजी की वजह से ही भारत और पाकिस्तान अलग हुए थे। गांधीजी अपने ही दल को जितना चाहते थे। क्या उस समय अहिंसा भाव नहीं था???? क्या उस समय लोगों के बिच में मतदान नहीं हो सकता था। अगर उस समय मतदान होता तो शायद आज हमारे मुस्लमान भाई हमारे साथ होते। लेकिन यही था गांधीजी का स्वार्थ।
लेकिन गांधीजी भारत स्वाधीन होने के असली हीरो हें। में उनका विरोध तो करता हूँ लेकिन उनका सम्मान भी. वस मुझे डर इस बात की हे की कोई कांग्रेस नेता इस ब्लॉग को पढ़ने के बाद मेरे घर पर आक्रमण न करे।
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